मुजफ्फरनगर। शहर से सटे पचेंडा कला गांव के लांसनायक बचन सिंह ने कारगिल युद्ध में लड़ते हुए 12 जून, 1999 को तोलोलिंग चोटी पर अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। उस समय छह साल के उनके जुड़वां बेटे हेमंत और हितेश शहादत का मतलब भी नहीं जानते थे, लेकिन शहीद की पत्नी कामेश बाला ने शहादत का सम्मान करते हुए एक बेटे को सेना भेजने का संकल्प ले लिया था।
12जून 1999 को लांसनायक बचन सिंह कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे, बेटे को फौज में भेजने का मां ने लियां था संकल्प
उनके सपने को बेटे हितेश ने साकार किया। हितेश ने उसी राजपूताना राइफल्स में अफसर के रूप में कमीशन लिया, जिसमें पिता लांसनायक थे। शुरुआत में कामेश को दोनों बच्चों को फौज में भेजने का जुनून था। बचन सिंह जब फौज में थे, तभी वह दोनों बेटों को लेकर गांव से मुजफ्फरनगर आ गई थीं ताकि उनकी पढ़ाई ठीक से हो सके।
हिमाचल में पढ़ने भेजा
बचन सिंह के युद्ध में शहीद होने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन पेंशन और सरकार से मिले पेट्रोल पंप ने कामेश के हौसले को बल दिया। उन्होंने भविष्य संवारने के लिए दोनों बेटों को खुद से दूर हिमाचल प्रदेश के आर्मी स्कूल भेज दिया। यहां से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद हितेश और हेमंत दिल्ली आ गए।
सपना साकार किया
वर्ष 2016 में स्नातक करने के बाद इसी साल हितेश का चयन देहरादूर स्थित भारतीय सैन्य अकादमी में हो गया। जून, 2018 में हितेश की पासिंगआउट परेड संपन्न होते ही कामेश बाला की कसम भी पूरी हुई। हितेश अभी सेना में मेजर है और अभी उनकी तैनाती दिल्ली में अग्निवीर प्रशिक्षण शाखा में है।
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